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Thursday, 18 January 2018

Bhagavad Gita Chapter 18, Geeta Saar in Hindi

Bhagavad Gita Chapter 18, Geeta Saar in Hindi



भगवान श्रीकृष्ण प्रत्येक इंसान से विभिन्न विषयों पर प्रश्न करते हैं और उन्हें माया रूपी संसार को मन से त्यागने को कहते हैं, भगवान का कहना है कि पूरी जिंदगी सुख पाने का एक और केवल एक ही रास्ता है और वह है उनके प्रति पूरा समर्पण।

तुम क्यों व्यर्थ चिंता करते हो? तुम क्यों भयभीत होते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा का न कभी जन्म होता है और न ही यह कभी मरता है।

परिवर्तन संसार का नियम है, एक पल में आप करोड़ों के स्वामी हो जाते हो और दूसरे पल ही आपको ऐसा लगता है कि आपके पास कुछ भी नहीं है।

अपने आप को भगवान के हवाले कर दो, यही सर्वोत्तम सहारा है, जिसने इस शस्त्र-हीन सहारे को पहचान लिया है वह भय, चिंता और दु:खों से मुक्त हो जाता है।

जो कुछ भी आज तुम्हारा है, कल किसी और का था और परसों किसी और का हो जाएगा, इसलिए माया के चकाचौंध में मत पड़ो। माया ही सारे दु:ख, दर्द का मूल कारण है।

न तो यह शरीर तुम्हारा है और न ही तुम इस शरीर के हो, यह शरीर पांच तत्वों (अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश) से बना है और एक दिन यह शरीर इन्हीं में विलीन हो जाएगा।

जो हुआ वह अच्छा ही हुआ है, जो हो रहा है वह अच्छा ही हो रहा है और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। बीते समय के लिए पश्चाताप मत करो, आने वाले समय के लिए चिंता मत करो, जो समय चल रहा है केवल उसी पर ध्यान केन्द्रित करो।

तुम्हारा अपना क्या है, जिसे तुम खो दोगे? तुम क्या साथ लाए थे जिसका तुम्हें खोने का डर है? तुमने क्या जन्म दिया जिसके विनाश का डर तुम्हें सता रहा है? तुम अपने साथ कुछ भी नहीं लाए थे। हर कोई खाली हाथ ही आया है और मरने के बाद खाली हाथ ही जाएगा।


॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥

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